सभी जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों को किया जाना चाहिए शामिल – हमारे देश में न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन ढाँचे में केवल कोयला नहीं

• भारत के न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन ढाँचे में केवल कोयला ही नहीं, बल्कि सभी जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए।

• एक व्यापक डीकार्बोनाइजेशन रणनीति को अपनाने की आवश्यकता है।

• ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसमें सामाजिक और आर्थिक व्यवधानकमकरने के लिए एक चरणबद्ध ट्रांज़िशनका दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। अगले दशक में जिन बातों पर विचार करना होगा उनमें पुरानी और लाभहीन खदानें, पुराने बिजली संयंत्र और ऐसे क्षेत्र जहां तेजी से तकनीकी परिवर्तन हो रहा है, जैसे कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र, प्रमुख हैं।

• केंद्र सरकार की मुख्य भूमिका एक राष्ट्रीय न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन नीति विकसित करने की होगी और साथ ही उसे हरित विकास, हरित रोजगार और जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा, केंद्र सरकार को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण भी जुटाना होगा।

• एक व्यापक राज्य और जिला न्यायसंगत एनर्जी ट्रांज़िशन कार्य योजना विकसित करना राज्य सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होगा।

• राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र जस्ट ट्रांजिशन कमीशन और राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स एक जन-केंद्रित योजना तैयार करने के लिए आवश्यक रहेंगी।

• अगर सिर्फ कोयला खदानों और ताप विद्युत क्षेत्रों की ही बात करें तो अगले 30 वर्षों में भारत में उचित एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए कम से कम $900 बिलियन की आवश्यकता होगी। इसमें से करीब 300 अरब डॉलर की जरूरत होगी।

• विकासशील देशों में न्यायोचित एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ईंधन के आर्थिक विविधीकरण का समर्थन करने के लिए और हरित ऊर्जा और औद्योगिक विकास और प्रभावित समुदायों की सहनशीलता के निर्माण करने के लिए अनुदान और रियायती वित्तपोषण की आवश्यकता होगी। अंत में चंद्र भूषण ने कहा कि चर्चाओं की प्रासंगिकता और उपयोगिता को देखते हुए अब वो इस डाइलॉग को एक वार्षिक आयोजन बनाएँगे।